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Vande Mataram
#22
<!--emo&Sad--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/sad.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='sad.gif' /><!--endemo--> <span style='font-size:14pt;line-height:100%'> सात दशक पहले भी सुलझा था वंदेमातरम विवाद </span>
[Wednesday, September 06, 2006 08:57:07 pm ]

नई दिल्ली (वार्ता) : पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव की समिति ने करीब सात दशक पहले वंदेमातरम पर पैदा हुए विवाद को अपने ढंग से सुलझाया था। कमिटी ने २८ अक्टूबर १९३७ को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रगीत को गायन की अनिवार्यता से मुक्त रखा और कहा था कि इस गीत के शुरू के दो पैरे ही प्रासंगिक हैं। आयोजक चाहें तो इसके स्थान पर कोई और गीत भी गा सकते हैं।

इस कमिटी का मार्गदर्शन गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने किया था। टैगोर ने ही सोई हुई राष्ट्रभक्ति को जगाने में सक्षम इस गीत के शब्दों को अपने संगीत और स्वर से नई धुन दी थी। स्वतंत्रता आंदोलन का मूलमंत्र बने इस गीत का अंग्रेजी में अनुवाद अरविंद घोष ने किया था।

इस अमर गीत की रचना बंकिम चंद चटर्जी ने ७ नवंबर १८७६ को बंगाल के कांतल पाड़ा गांव में की थी। साल १८८० से १८८२ के बीच यह गीत कई अंशों में बंगला पत्र 'बंग दर्शन' में प्रकाशित हुआ। बंकिम द्वारा १८८२ में आनंद मठ में इस गीत को स्थान देने के साथ ही गीत विवादों में आ गया। तब से अब तक विवाद ने इसका दामन नहीं छोड़ा है।

इतिहासकारों ने आनंद मठ के कुछ अंशों को मुस्लिम विरोधी बताया है और कहा है कि इस उपन्यास में मुसलमानों को विदेशी और देश के दुश्मन के रूप में चित्नित किया गया है। कट्टरपंथी मुस्लिम इस गीत में भारत मां के गुणगान को बुतपरस्ती का प्रतीक और इस्लाम विरोधी मानते हैं। हालांकि मुसलमानों का एक बड़ा तबका इस पक्ष में है कि जिस धरती का हमने अन्न खाया है, उसकी इबादत में कोई हर्ज नहीं है।

टैगोर ने पहली बार इस गीत को लय और संगीत के साथ १८९६ में कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया था। भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पं. विष्णु दिगंबर पलुष्कर ने इस गीत को जन-जन की जुबां तक पहुंचाने में अद्वितीय भूमिका निभाई। मूल रूप में वंदेमातरम के शुरू में दो पैरे संस्कृत में थे और बाकी बंगला में। १९०६ में वंदेमातरम देवनागरी लिपि में पेश किया गया।

१९०५ में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद देशभर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नई चेतना जागी और विरोध की चिनगारी में वंदेमातरम ने घी का काम किया। ब्रिटिश हुकूमत ने इस पर पाबंदी लगा दी, लेकिन इस पाबंदी ने गीत की लोकप्रियता को और बढ़ाया। हिंदू और मुसलमान सभी की जुबां पर सिर्फ वंदेमातरम था। ७ सितंबर १९०५ को कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में वंदेमातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। तभी से कांग्रेस के हर अधिवेशन की शुरुआत इस गीत के गायन और समापन राष्ट्रगान से होता है।

ब्रिटिश सरकार ने वंदेमातरम पर जरूर पाबंदी लगाई थी, लेकिन दुश्मन के खिलाफ बाजुओं को फड़काने में इसी सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन सेना के खिलाफ बंगाल रेजिमेंट के सैनिकों को वंदेमातरम गाने की अनुमति दी थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में वंदेमातरम का गायन सुनिश्चित कराया। गांधी की सर्वधर्म सभा भी वंदेमातरम से शुरू होती थी।

१४ अगस्त १९४७ की रात संविधान सभा की पहली बैठक का आरंभ वंदेमातरम के साथ और समापन राष्ट्रगान से हुआ था। २४ जनवरी १९५० को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि स्वतंत्नता आंदोलन से जुड़े होने से देश में वंदेमातरम को भी राष्ट्रगान के बराबर सम्मान दिया जाएगा। <span style='font-size:21pt;line-height:100%'>वंदेमातरम की लोकप्रियता का अंदाजा साल २००२ में बीबीसी के सर्वेक्षण से भी लगा। इसमें इसे दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत माना गया था। </span>



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