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News & Trends - Indian Society Lifestyle Standards
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<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin--><b>रामायण के दोहों से नशाखोरी के खिलाफ मुहिम</b>
Apr 21, 05:45 pm

वाराणसी। कहते हैं कि दिल में जज्बा हो, इरादा अटल हो और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी मुश्किल आडे़ नहीं आ सकती है। सोनभद्र जिले के रहने वाले जन्म से अंधे नंदलाल आजकल आदिवासी इलाकों में रामायण के दोहों से नशाखोरी के खिलाफ एक मुहिम चलाए हुए हैं। उनका दावा है कि उन्होंने अब तक बहुत से लोगों को शराब और धूम्रपान से छुटकारा दिला दिया है।

  सोनभद्र जिले के गहलगढ़ गांव के नंदलाल के जीवन का मकसद ही अब नशामुक्त समाज बनना है। भले ही नंदलाल जन्म से अंधे हैं लेकिन गांव की पगडंडियों पर पूरे आत्मविश्वास के साथ बिना छड़ी के सहारे सुबह-सुबह अपनी डयूटी पर जरूर जाते हैं। नंदलाल की नशामुक्त समाज की मुहिम पिछले दो सालों से चल रही है जिसमें अभी तक वे बहुत से लोगों को नशे के मकड़जाल से बाहर निकाल चुके हैं।

  गौरतलब है कि सोनभद्र के आदिवासी कच्ची शराब घर-घर में अपने पीनेभर या तो बना लेते हैं या शराब के अड्डे से खरीदकर पीते हैं। इस शराबखोरी में इनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर आ जाता है। शराब से परिवार की बर्बादी नंदलाल को हमेशा से चुभती रही। इसलिए नंदलाल खुद शराब के अड्डे पर जाकर उन्हें समझाते हैं।

  नंदलाल के समझाने का तरीका भी अलग है। नंदलाल एक शराब के अड्डे पर बार-बार जाते हैं और पीने वालों को रामायण के दोहे सुनाते हैं। कभी-कभी तो नंदलाल शराब के अड्डे पर रामायण के पाठ का कार्यक्रम भी रख देते हैं जिसमें गांव की महिलाएं उनका सहयोग करती हैं। नंदलाल बताते है कि कभी-कभी ऐसा करने में उन्हें गाली भी सुननी पड़ती है लेकिन धीरे-धीरे शराबी शराब छोड़ देता है और उसका परिवार सुखी हो जाता है।

  नंदलाल को नशामुक्ति अभियान के खिलाफ जंग छेड़ने का जज्बा तब मिला, जब इसी शराब की वजह से नंदलाल के सिर से बचपन में ही बाप का साया उठ गया था। मां का आंचल पकड़कर नंदलाल जब चलना सीखे, तो उनकी मां उन्हें छोड़कर इस दुनिया से चल बसीं। अब नंदलाल का इस दुनिया में कोई नहीं है लेकिन शराब की वजह से हुई बर्बादी उन्हें हमेशा सालती रही। इसलिए उन्होंने अब उसके खिलाफ अभियान छेड़ने का फैसला किया।

  आज इस कारनामे से क्षेत्र में इन्हें शराबियों का डाक्टर कहा जाने लगा हैं क्योंकि आंखों से दिखाई न देने के बावजूद भी वे प्रतिदिन सुबह उठकर किसी एक गांव में जाते हैं और वहां घर-घर जाकर उन लोगों को समझाते हैं, जिन्हें शराब ने भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है। नंदलाल उन घरों की भी खोज खबर लेते रहते हैं, जिनके पति शराब छोड़ चुके हैं।

  काकरी गांव की सुकुमारी बताती हैं कि नंदलाल के आने के प्रभाव से वे अब शराब पीना तो छोड़ ही दिया है। साथ ही वे अब कुछ काम भी करने लगे हैं। कोहरौला गांव की प्रभावती देवी बताती हैं कि शराब छोड़ने के बाद वे काम के साथ-साथ पूजा भी करने लगे हैं।

  सबसे खास बात यह है कि उनकी इस मुहिम में गांव की महिलाएं नंदलाल के साथ हैं, क्योंकि अपने पति की शराबखोरी से सबसे ज्यादा महिलाएं ही परेशान हैं। नंदलाल पूरे क्षेत्र में रामचरितमानस की चौपाइयां सुनाकर लोगों को सद्मार्ग पर चलना सीखा रहे हैं।

  नंदलाल नशामुक्ति अभियान के अलावा एक छोटे बच्चों का स्कूल भी चलाते हैं क्योंकि नंदलाल को लगता है कि बच्चों को पढ़ाकर वे उनके पिता को नशामुक्ति के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इन बच्चों में वे बच्चे खास तौर पर आते हैं जिनके पिता शराब पीने के आदी हैं। नंदलाल का यह अभियान सोनभद्र जिले के कई गांवों में जारी है। इसमें से काकरी, रेहता और कोहरौला मुख्य गांव है।

  रामायण के दोहों से नशे का इलाज कितना हो पाएगा, यह बता पाना तो बहुत मुश्किल है लेकिन इतना जरूर है कि सोनभद्र के कुछ क्षेत्रों में कल तक जहां शाम को नशे के जाम टकराया करते थे, वहां अब आदिवासी गीत-संगीत पर भी थिरकते नजर आ रहे हैं और यह चमत्कार नंदलाल के प्रयासों से हुआ है। नंदलाल उत्साहित हैं और उनका मानना है कि यह मुहिम पूरे आदिवासी इलाकों में चलनी चाहिए।

http://in.jagran.yahoo.com/news/oddnews/ge...15_35_1347.html
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Blind by birth, villager Nandalal of Sonbhadra-UP works amid tribals. His mission in life is a alchohol-free tribal belt. Tribals of Sonabhadra area are heavily given to drinking for a few generations. To reform such tribals he uses Ramayana of Tulasidas as the tool. Cheered and supported by the tribal women he goes and sets up his ramayana camp near and sometimes right in front of the liquor shops, one after the other, and his troop keeps singing ramayana until the tribals dont give up. As it seems his efforts are already showing results and instead of drinking many tribals can be seen joining Nandalal is singing Ramayana. Not only is this resulting is better economic improvement and health for tribals, but also the revival of the traditional tribal music and dance which can be often noted these days in the evenings. Women are fanatic supporters of Nandalal. He also runs a traditional school for tribal kids.
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News &amp; Trends - Indian Society Lifestyle Standards - by Bodhi - 04-24-2008, 01:05 PM

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