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Rama Setu -2
Above:

I saw that, no pix etc. <!--emo&Sad--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/sad.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='sad.gif' /><!--endemo-->
(The verse itself is the one about the atma dressing up in different bodies in different lifetimes, is it not?)
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<b>Anti-Ram remarks: Criminal case filed against TN CM</b><!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin-->Bangalore, October 2: A case has been filed against Tamil Nadu Chief Minister M Karunanidhi for his anti-Ram remarks in a city court in Bangalore.
In the petition, filed by three citizens - Vimalanathan, Rajashekar and Cheran - have asked for prosecution of Karunanidhi for hurting the religious sentiments of the Hindus.

Additional Chief Metropolitan Magistrate Raghunath, after hearing the counsel for the petitioner, yesterday adjounred the hearing to October 11
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
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संतों ने करुणानिधि की 'जीभ' काटी
[Tuesday, October 02, 2007 11:42:26 am ]

वाराणसी (भाषा): राम सेतु मामले में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के कथित राम और रामायण विरोधी बयानों से भड़के संतों की एक धर्म संसद ने सोमवार को करुणानिधि की जीभ काटने का फरमान जारी किया जिसके बाद संतों और सैकड़ों लोगों ने उनके पुतले की न सिर्फ जीभ तलवार से काट डाली बल्कि उसकी जमकर पिटाई कर अपना गुस्सा निकाला।

ऐतिहासिक संकटमोचन मंदिर के सामने सैकड़ों साधु-संतों ने धर्म संसद का आयोजन किया और इसमें पातालपुरी मठ के महंत बालकदास ने करुणानिधि को दोषी ठहराते हुए उन्हें मृत्युदंड की सजा का अधिकारी बताया। लेकिन उन्होंने हिंदू धर्म की उदारता का उल्लेख कर सजा कम करते हुए करुणानिधि की जीभ काटने की सजा सुनाई जिसके बाद वहां मौजूद डॉ. लक्ष्मण दास ने करुणानिधि के पुतले की जीभ तलवार से काट दी।

बाद में वहां उपस्थित संतों ने करुणानिधि के पुतले की जमकर पिटाई कर उसे आग के हवाले कर दिया। इस दौरान संत और उनके सैकड़ों अनुयायी हर-हर महादेव और जय श्री राम के नारे लगाते रहे।
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देखें: डीएमके नेता भूख हड़ताल पर
आसमान से कैसा दिखता है रामसेतु

minimal translation:
bust of Karunanidhi was burnt by saints in Varanasi.
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साक्ष्यों से मुक्त इतिहास
राम और रामायण के प्रति आस्था को ऐतिहासिक साक्ष्यों की सीमाओं से परे मान रहे हैं एस.शंकर
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राम या रामसेतु के पक्ष में किस तरह के ऐतिहासिक प्रमाण है, यह बहस का विषय है, पर केवल बुद्धिजीवियों के बीच। आम लोगों के लिए यह कभी विवाद का विषय नहीं रहा। भारत में पिछले दो सौ वर्षो से अधिक समय से ईसाई मिशनरी राम, कृष्ण, शिव तथा समस्त हिंदू देवी-देवताओं को काल्पनिक या कुत्सित बताते रहे है। हिंदू जनता और विद्वानों के लिए भी यह बात विचार करने या उत्तर देने योग्य नहीं समझी गई। काशी या मदुरई के पंडित ऐसी बातों को हंसी में उड़ा देते थे, मानो किसी मूर्ख बालक की बात सुनी हो। इसका कारण है कि भारतवर्ष के कण-कण में शिव, राम और कृष्ण बसे हैं। भारतीय सभ्यता की इतिहास-दृष्टि ही पूर्णत: भिन्न है, इसीलिए साधारण जनता, गांव के किसान और संपूर्ण स्त्री समाज को रामायण या महाभारत के विवरणों के लिए वैसे किसी प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है, जिसे पाश्चात्य दृष्टि 'ऐतिहासिक साक्ष्य' कहती है।
हमारे बुद्धिजीवियों ने 'हिस्टरी' को 'इतिहास' का पर्याय मान लिया और इसलिए वे उस परेशानी में पड़ते है जिसमें भारतीय जनता कभी नहीं पड़ती। यूरोपियनों की 'हिस्टरी' मनुष्य केंद्रित अथवा स्व-केंद्रित है। यह घटनाओं की वह क्रम-कथा है, जो उन्हे अतीत में ही प्रतिष्ठित करके देखती है। इतिहास है: इति+ह+आस। अर्थात् ऐसा ही होता आया है। विगत को देखने-समझने की यह पद्धति ही हिंदू या भारतीय दृष्टि है। यह काल के उस आयाम को प्रस्तुत करती है जो आवर्ती है, सतत है और निरंतर अपना नवीकरण करता चलता है। भारतीय मानस शिव पुराण, रामचरित मानस, महाभारत जैसी महान धरोहरों को इतिहास के चौखटे में नहीं रखता। भारतीय दृष्टि में काल की एक आवर्ती धारणा भी थी कि ऐसा होता रहा है, बार-बार होता है। भारतीय इतिहास बोध की विशेषता यह थी कि हम इतिहास का बोझ नहीं ढोते थे। अपने हर कर्तव्य का निश्चय इतिहास से नहीं करते थे। यह तो पिछले दो सौ वर्षो की अंग्रेजी शिक्षा ने हमें इतिहासग्रस्त बना दिया है। मुगलों के जमाने से चित्रांकन शुरू हुआ और अंग्रेजों के जमाने से चौराहों पर मूर्तियां लगनी शुरू हुईं, जबकि भारतीय परंपरा खुद को विचारों से जोड़ती थी। राम या कृष्ण वास्तव में हुए थे या नहीं, यह प्रश्न ही निरर्थक है। कहा जा सकता है कि मानव जीवन और समाज में जो बार-बार होता है उसके विवरण में नहीं, बल्कि शाश्वत, तत्व-ज्ञान में भारतवासियों की जिज्ञासा थी। दूसरी ओर यूरोप की जिज्ञासा काल में अपना स्थान ढूंढने की थी। इसी से आज सारा इतिहास लेखन प्रेरित है। जब भारतीय किसान या पंडित नीलकंठ शिव, मर्यादा पुरुषोत्तम राम या लीलाधर कृष्ण के ऐतिहासिक साक्ष्यों की परवाह नहीं करते तो हमारे बुद्धिजीवी हलकान होने लगते है। राष्ट्रीय चेतना वाले लोगों को श्रीराम या रामसेतु के ऐतिहासिक प्रमाण की अधिक चिंता करनी भी नहीं चाहिए। यह तो अपने शत्रु के बनाए खेल के नियम स्वीकार करने जैसा हुआ, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि रामायण या महाभारत के विवरणों के लिए पाश्चात्य इतिहास दृष्टि को संतुष्ट करने के लिए प्रमाणों की कोई कमी है। यूरोपीय इतिहास में प्रत्यक्षदर्शी विवरण, दस्तावेज, पुरातात्विक चिह्नं, शिलालेख, भित्ति चित्र, पौराणिक ग्रंथ, साहित्य, कलाकृतियां, लोक-आख्यान, स्थानों के नाम, विभिन्न स्मारकों से जुड़ी किंवदंतियां आदि को साक्ष्य माना जाता है। विशेषकर यदि वह उपर्युक्त वर्णित अन्य साक्ष्यों से संपुष्ट होता हो। उदाहरण के लिए हमारे आज के बड़े इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कुछ बातें दोहरा कर उन्हे ऐतिहासिक तथ्य के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है, जैसे मोहम्मद गौरी धन के लालच में भारत पर आक्रमण करने आया, बाबर भारत प्रेमी था, जहांगीर न्यायप्रिय था, अकबर उदार था, औरंगजेब जिंदा पीर था, हिंदू राजा भी मंदिर तोड़ा करते थे, अंग्रेज विकसित थे, हिंदू समाज पिछड़ा था, ब्राह्मणों के उत्पीड़न से त्रस्त होकर यहां शूद्र इस्लाम में मतांतरित हुए आदि। सवाल यह है कि ऐसी बड़ी-बड़ी प्रस्थापनाओं के लिए इन इतिहासकारों ने कितने और किस तरह के प्रमाण दिए है? कहीं केवल एक शब्द, कहीं किसी राजकीय दस्तावेज का एक आदेश, कोई एक फरमान और बस! इतने पर ही प्रमुख इतिहासकारों ने ठसक से पूरी की पूरी प्रस्थापना बना दी। सच यह है कि विश्व के किसी भी आख्यान में वर्णित स्थानों, पात्रों, विवरणों, घटनाओं के इतने प्रमाण उपलब्ध नहीं है जितने रामायण और महाभारत के है। इसीलिए हमारे इतिहासकार जो बीच-बीच में हमसे प्रमाण मांगते है, स्वयं प्रमाणों से इतना डरते है कि प्रत्येक शोध को छल-प्रपंच और सत्ता के दुरुपयोग से अविलंब बंद करवाते है। इन लोगों ने सरस्वती शोध परियोजना को बंद कराया, अयोध्या में खुदाई का विरोध किया, कुरुक्षेत्र, मथुरा और द्वारिका में पुरातात्विक खोजबीन रुकवाई- केवल इसलिए, क्योंकि हिंदू-विरोधी मानसिकता से ग्रस्त वामपंथी, नेहरूपंथी नेता और प्रचारक उसे अपने गर्हित उद्देश्य में बाधक समझ रहे है।
बात श्रीराम या रामसेतु के साक्ष्य देने की नहीं है, असल बात है एक धूर्त, हिंदू-विरोधी राजनीतिक, वैचारिक रणनीति का कठोर प्रतिकार करने की। प्रश्न हमारे सभ्यतागत, स्थायी बैरियों को संतुष्ट करने का नहीं, उन्हे उत्तर देने और उनका वास्तविक रूप उजागर करने का है। ऐसा करने के लिए हिंदू जनता में आत्मबल अब भी है। दुर्भाग्य से उसके प्रतिनिधि ही झिझक जाते है। इसी का लाभ शत्रु उठाते है और उलटे हमें अपदस्थ करने का दुस्साहस करते है। नेहरूवादी-मा‌र्क्सवादी इतिहासकारों का भारतीय सभ्यता संस्कृति से अलगाव है। वे यूरोपियन दृष्टि के दास रहे है, इसलिए धड़ल्ले से कहते है कि भारतीयों में इतिहास बोध नहीं है, किंतु सच यह है हिंदुओं की भिन्न इतिहास-दृष्टि का दुरुपयोग करते हुए वामपंथियों ने भारतीय सभ्यता-संस्कृति का सदैव उपहास करने का काम किया है। अभी यही हो रहा है। चाहे सरकार ने अदालत में श्रीराम और रामायण को काल्पनिक बताने वाले हलफनामे को भूल मान लिया हो, किंतु कतिपय तथाकथित बुद्धिजीवी अभी भी वही दोहरा रहे है। यह कोई आकस्मिक या नई बात नहीं है।
[Tuesday, October 02, 2007 9:55:21 PM (IST) ]

http://www.jagran.com/news/opinion.aspx#
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<!--emo&:cool--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/specool.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='specool.gif' /><!--endemo--> Hisar, October 3
Dr S. Kalyanaraman, national president of the Ram Setu Raksha Manch, said here today that if implemented the sethusamudaram channel project would effectively destroy vast thorium reserves found in this area which could help generate 40,00,000 MW of power per year for the next 389 years.

Dr Kalyanaraman, a former senior executive of the Asian Development Bank, said India currently produced 1,00,000 MW of power per year. India’s thorium reserves permitted the design and operation of U-233 fuelled breeder reactors which were under development in the country. These would serve as the mainstay of the final thorium utilisation stage of the country’s nuclear programme.

He said a superpower was backing the project to destroy India’s thorium reserves which could make India a superpower itself in the near future.

He said any devastation in the coastline of South India would have serious implications for thorium and titanium reserves found in abundance in the region. If these reserves, which were accumulating as placer deposits because of unique patterns of ocean currents and the presence of an effective tsunami barrier like Ram Setu, were lost in mid-ocean, these could not be utilised in a cost-effective manner to meet the requirements of India’s atomic energy and space industries.

Dr Kalyanaraman said tsunami experts had opined that the channel alignment directly pointed towards the path of tsunami in the Bay of Bengal and created a funnel effect absorbing the energy of the tsunami or cyclones which could destroy the southern coastline and the coastline of Kerala.

He said Ram Setu was not just a pile of sand. Rather, it symbolised the belief of crores of people in India. The fight to save Ram Setu was the “dharma” of every Indian. He said in no case would the people of the country give up their struggle to save Ram Setu.
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In the sixties C.N.Annadurai (referred to as Anna) gave some impassioned speeches including in the parliament in Delhi; to change the name of the Madras state to Thamizh Nadu (Tamil Nadu!). His primary contention was that this is the name that has always been used historically (which is true) and his evidence was a number of Thamizh literary references.

Ramayanam by the Thamizh poet Kambar was one of them.

Karunanidhi claims to be the heir of Anna to not only the DMK party but to the entire Thamizh culture and Dravidan movement. Does he think Anna lied to the parliament or will he accept that Ramayanam is not all magical mythology without basis?

Unless he can prove that someone inserted Rama into Ramayanam after Anna's speech in parliament, whenever he doubts Rama, he is calling Anna a lier.

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No, no...Karunanidhi of 2007 is calling Karunanidhi of 1972 a liar.

Setu debate: Karuna flip-flops for the past 35 yrs
<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin--> <b>Chief Minister Karunanidhi had written a foreword to the Gazetteer of the Ramanathapuram district in 1972 citing the Adam's Bridge as an authentic proof of the culture and tradition of Tamil Nadu.</b>

Advocate and Ramanathapuram District President of RSS, D Kuppuramu said while quoting from the foreword, “It reflects our civization and is a mirror of society.”

“<b>In 1972 he accepted this as a Chief Minister but now he refutes it</b>,” Kuppuramu added.
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
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<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin--><b>Sonia blackballs Lodhi Road tunnel project </b>
Pioneer.com
Rajesh Kumar | New Delhi
Trans-Yamuna residents would continue to take a circuitous route through Ashram or Pragati Maidan to access the heart of the city. Congress president Sonia Gandhi has said that the tunnel project connecting National Highway 24 to Lodhi Road bypassing<b> Humayun's Tomb and other monuments </b>be shelved for now.

The Congress president has advised the Delhi Government to stop thinking about the tunnel project. The direction comes following the request by Delhi Chief Minister Sheila Dikshit to intervene in the matter and direct the Prime Minister's Office (PMO) to clear the prestigious project. Gandhi has expressed serious concern over the likely adverse impact of the proposed tunnel road in a letter to Dikshit that the project is not in sync with UNESCO guidelines and the opinions of environmentalists and heritage experts and so the Government should not pursue the project any further. The PMO had also raised objections to the project after which Dikshit shot off a letter to Gandhi and the Prime Minister Manmohan Singh last month seeking a green signal for the project.

The letter said: "It is advisable not to pursue the project further due to objections raised by environmentalists and heritage experts." The Delhi Government had proposed a Rs 560 crore tunnel from Ring Road to Lodhi Road, to reduce travelling time by six minutes when the participants are taken from the Games Village to the Jawaharlal Nehru Stadium for the opening and closing ceremonies .

Heritage experts and conservationists who were up in arms against the project contended that it would cause vibration in the area damaging Humayun Tomb and 13 other monuments. The tunnel road would weaken the base of the tomb and the vibrations caused during the digging of this tunnel would lead to structural damage to the <b>Mughal edifice</b>.
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
For barbaric Muslim Invader tombs, they look for Hertiage and for Ram Setu they call for bogey economy or Science. Damn these p-sec of India. <!--emo&:thumbdown--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/thumbsdownsmileyanim.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='thumbsdownsmileyanim.gif' /><!--endemo-->
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<!--QuoteBegin-Mudy+Oct 6 2007, 02:46 AM-->QUOTE(Mudy @ Oct 6 2007, 02:46 AM)<!--QuoteEBegin--><!--QuoteBegin--><div class='quotetop'>QUOTE<!--QuoteEBegin--><b>Sonia blackballs Lodhi Road tunnel project </b>
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
For barbaric Muslim Invader tombs, they look for Hertiage and for Ram Setu they call for bogey economy or Science. Damn these p-sec of India. <!--emo&:thumbdown--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/thumbsdownsmileyanim.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='thumbsdownsmileyanim.gif' /><!--endemo-->
[right][snapback]73943[/snapback][/right]
<!--QuoteEnd--></div><!--QuoteEEnd-->

Exactly my sentiments. Clear double standards of the Congies. They tread extremely carefully on matters concerning the minorities - particularly the two most volatile and vocal groups, the christians and muslims - but will stomp and spit on anything that concerns hinduism and the hindus. From the congress point of view, only the christians and muslims have heritages worth protecting (it seems that a barbarian recognizes, appreciates and acknowledges only barbarian cultures), and anything and everything connected to hinduism deserves contempt and obliteration. Sonia Gandhi and her band of robbers are not averse to exhibiting their true christian spirit!
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^ we have to take this sort of outrage into the public eye. what's the point just fuming within this forum? At the least can we not spring for periodical full page ads in the popular newspapers of India? I wouldn't mind paying my share and hopefully so will others!

May be bi-weekly or monthly the forum can through a small task committee summarize critical issues discussed and after polling $ contributors, publish those that meet with majority.

We have to do something. not just sit here and vent, rave and rant.
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Sadamarshna, most anglisi language newspapers in India are anti-Hindu and work for national christoislamis or external christos and/or govts. It's in their interests to keep you invisible and your intended audience ignorant. They will say your ad is 'Hindutva' (in a manner where it comes off accusatory) and turn you away.

From the Pioneer, posted by Acharya in the Media thread (#208)
<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin-->The paper quoted an India-based former CIA agent Johan Smith's memoirs which said: "American officials or CIA representatives decide what they (most of the Indian newspapers and reporters) should write. There are several newspapers and reporters in India who abide by US officials' directives."<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd--> <!--emo&Sad--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/sad.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='sad.gif' /><!--endemo-->
Pioneer is good. There were some other papers that seemed positive towards Hinduism - or at least, they were not anti-Hindu - but all the English language papers' names sound similar so I can't differentiate between them all.

<b>ADDED:</b>
And also see:
"What is media & who owns media in Bharat" at
Post #191 AND end of #198

So first a list of several reliable newspapers would need to be compiled, IMO.
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<!--emo&:thumbsup--><img src='style_emoticons/<#EMO_DIR#>/thumbup.gif' border='0' style='vertical-align:middle' alt='thumbup.gif' /><!--endemo--> <span style='font-size:21pt;line-height:100%'><span style='font-family:Optima'>Ditto x Infinity</span></span>.
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There was a plan to carry out full page ads in most national level papers. the estimated cost was tooo high. finally the ad ran in hindu and pioneer.

thanks to the asi affidavits, the issue got the public attention and outrage it deserves.

Mudyji ironically in rajya sabha it was in the same day same session that ambika soni said that ram setu is no heritage and asi is uninterested in it - that she also said that the asi no-objection-certificate to the lodhi road tunnel is being withdrawn.

meanwhile interestingly, Rahul 8ajaj has questioned Baalu about the economic analysis of sscp. what is the internal roi, he asked in a written query. please send me the cost and business assumptions of the proposal, he wrote. let us see how baalu will respond. (Bajaj is now in Rajya Sabha from Maharashtra)
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<img src='http://www.hindujagruti.org/news/out/images/1191657919_bodh_2_oct_ramsetu.jpg' border='0' alt='user posted image' />
Copyright © 2007 Hindu Janajagruti Samiti
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<span style='color:red'>द्रमुक का दुराग्रही चिंतन </span>
श्री बलबीर पुंज, दैनिक जागरण

"ब्रितानियों ने बनियों व ब्राह्मणों को सत्ता हस्तांतरित की है इसलिए हम भारत की आजादी नहीं स्वीकार करते।"

यह कहना था जस्टिस पार्टी के नेता रामास्वामी पेरियार का। 15 अगस्त, 1947 के स्वतंत्रता दिवस को उन्होंने शोक दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था। उन्होंने ब्रितानियों के बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत प्रचारित आर्य-द्रविड़ सिद्धांत पर आधारित उत्तर भारत और ब्राह्मण विरोध का आंदोलन खड़ा किया। हिंदू देवी-देवताओं का सार्वजनिक अपमान किया। पेरियार की पत्नी मनियामाई ने रामलीलाओं के मंचन की निंदा करते हुए चेन्नई में रावणलीला का आयोजन किया। आज राम और रामायण के खिलाफ विषवमन करने वाले करुणानिधि और उनका दल द्रमुक उसी साम्राज्यवाद प्रसूत अलगाववादी चिंतन के मानसपुत्र हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इस ईशनिंदा अभियान में करुणानिधि को मा‌र्क्सवादियों का पूरा समर्थन मिला है।

रामास्वामी पेरियार यदि दक्षिण भारत को शेष भारत से अलग कर एक स्वतंत्र द्रविड़स्तान की कल्पना करते थे तो यहां के कम्युनिस्ट भी भारत को एक एकीकृत भारत के रूप में नहीं देखते थे। उनके चिंतन में भारत 16 राष्ट्रों का समूह था और अंग्रेजों के जाने के बाद उसे उतने ही हिस्सों में खंडित हो जाना चाहिए था। इसीलिए दोनों ने ही जिन्ना के पाकिस्तान सपने को साकार करने के लिए पूरा सहयोग दिया। यदि पेरियार ने हर तरह से अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सत्ता के पक्ष में आवाज उठाई तो भारतीय कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में ब्रितानी हुकूमत का साथ दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय मद्रास में एनी बेसेंट की थियोसोफिकल सोसायटी ने होम रूल आंदोलन आरंभ किया और मांग की कि युद्ध के बाद भारतीयों के लिए स्व-शासन का प्रावधान हो। इससे अंग्रेजों में स्वाभाविक चिंता हुई और इसकी काट के लिए उनके आशीर्वाद से साउथ इंडियन लिबरेशन फ्रंट की स्थापना हुई, जिसका नाम बदलकर 1917 में जस्टिस पार्टी रखा गया। जस्टिस पार्टी ने कांग्रेस आंदोलन को ब्राह्मणवादी आंदोलन कहकर लांक्षित किया और भारत में अंग्रेजों का राज सदा के लिए बना रहे, इसकी पुरजोर कोशिश की। जस्टिस पार्टी के इस राष्ट्रविरोधी चिंतन में तत्कालीन ईसाई मिशनरियों की बहुत बड़ी भूमिका थी। इसी जस्टिस पार्टी से पहले डीके और बाद में डीएमके आंदोलन का जन्म हुआ। अगड़ी जातियों, खासकर ब्राह्मणों को मतांतरित करने में विफल रहे ईसाई मिशनरियों ने दक्षिण के गैर-ब्राह्मणों के माध्यम से अपना उल्लू साधना चाहा। पेरियार का सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट, जस्टिस पार्टी और बाद में इन दोनों के विलय से खड़ा डीके मूवमेंट वस्तुत: चर्च और ब्रितानी साम्राज्यवाद का संकर नस्ल है।

पेरियार सभी तरह की सामाजिक बुराइयों के लिए उत्तर भारत, ब्राह्मणों, हिंदी वेद, पुराण, धर्मशास्त्र को दोषी ठहराते थे। सामाजिक न्याय और वर्ण व्यवस्था के विरोध के नाम पर पेरियार ने स्वाधीनता आंदोलन का विरोध और देश के शहीदों का अपमान किया। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को पुष्ट करने के उद्देश्य से समाज को खंडित करने का भी काम किया। अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव भी रखा, जिसे कांग्रेस और गांधीजी ने नकार दिया। आज उसी मानसिकता से प्रेरित करुणानिधि राम और रामायण के अस्तित्व का प्रमाण मांग रहे हैं। आस्था का वैज्ञानिक साक्ष्य क्या होगा? और यह प्रमाण केवल हिंदुओं से ही क्यों मांगा जाता है? राम नहीं थे; इस बात का प्रमाण करुणानिधि सामने रखें। इस बात का ऐतिहासिक साक्ष्य दें कि पैगंबर साहब चांद-तारों की राह जन्नत गए। इस बात का प्रमाण दें कि सूली पर टांग दिए जाने के बाद ईसा मसीह पुन: प्रकट हुए। सबसे बढ़कर करुणानिधि इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण दें कि तमिल द्रविड़ नस्ल के हैं और आर्य बाहर से आए थे। ब्रितानियों द्वारा पोषित जिस आर्य-द्रविड़ संघर्ष का द्रमुक बखेड़ा खड़ा करता है उसका एक भी साक्ष्य न तो उत्तर भारत के आर्षग्रंथों में है और न ही तमिल साहित्य में। 1937 में हिंदी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के उपरांत अक्टूबर, 1938 को सलेम में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने कहा था, तमिलों की आजादी की रक्षा करने का श्रेष्ठ मार्ग शेष भारत से अलग होने के लिए संघर्ष करना है।

यह इतिहास सम्मत है कि रामास्वामी पेरियार ने जिन्ना के अलग पाकिस्तान की मांग का समर्थन करते हुए 1938 में इरोड में आयोजित एक जनसभा में कहा था, जिन्ना का विभाजन प्रस्ताव मेरे लिए आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि मैं खुद भी पिछले बीस सालों से अलग द्रविड़नाडु की मांग कर रहा हूं। हिंदू-मुस्लिम समस्या को सुलझाने के लिए जिन्ना के प्रस्ताव से अच्छा विकल्प कोई दूसरा नहीं है। क्या कभी कोई देशभक्त भारतीय अखंडता और उसकी बहुलतावादी संस्कृति को नकार कर तथाकथित सामाजिक न्याय के नाम पर अलग देश की मांग कर सकता है? 21 जनवरी, 1940 को मद्रास प्रांत के राज्यपाल ने अनिवार्य हिंदी पाठ को निरस्त कर दिया। तब जिन्ना ने उन्हें टेलीग्राम भेजकर द्रविड़नाडु की दिशा में पहली जीत के लिए बधाई दी थी। अप्रैल, 1941 में मद्रास में आयोजित मुस्लिम लीग के 28वें वार्षिक अधिवेशन में जिन्ना ने अपने भाषण में द्रविड़स्तान का समर्थन करते हुए गैर-ब्राह्मणों के प्रति अपनी पूरी सहानुभूति और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देने की बात की थी। दिसंबर,1944 में कानपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने उत्तर भारत के गैर-ब्राह्मणों से अपनी हिंदू पहचान छोड़कर खुद को द्रविड़ घोषित करने का आह्वान किया। उत्तर भारत तो दूर, क्या पेरियार दक्षिण भारत में ही सफल हो पाए? उन्होंने विनायक की प्रतिमा तोड़ी, आज गणपति की पूजा तमिलनाडु में चारों ओर होती है। उन्होंने राम की तस्वीरें फाड़ी, उन पर चप्पलों की माला डालीं, किंतु कुछ साल पूर्व तमिलनाडु के कारसेवक बड़ी संख्या में रामशिला लेकर अयोध्या पहुंचे थे। उन्होंने अंधविश्वासों से लड़ने की मुहिम छेड़ी, किंतु आज द्रमुक-अन्नाद्रमुक के अनुयायी अपने नेता के दीर्घायु होने के लिए सिर मंुडवाते हैं। स्वयं करुणानिधि और उनके परिजन साईं बाबा के चरण रज सिर से लगाते हैं।

यह स्पष्ट है कि करुणानिधि 2007 में भी आज से 90 वर्ष पूर्व 1917 के तमिलनाडु से वैचारिक रूप से बंधे हुए हैं। इस बीच गंगा से बहुत पानी बह चुका है। आज न तो पेरियार के चिंतन की तमिलनाडु में स्वीकार्यता है और न ही उसे आशीर्वाद व संरक्षण देने वाले अंग्रेज आका शेष हैं। अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता ब्राह्मण हैं और करुणानिधि से कम लोकप्रिय नहीं हैं। आज तमिलनाडु में आस्थावान हिंदुओं की कमी नहीं है। राम और रामायण के अस्तित्व को नकारते हुए करुणानिधि और कम्युनिस्ट अपने आप में कुछ मौलिक नहीं कर रहे हैं, बल्कि भारतीय अस्मिता पर कुठाराघात कर देश को खंडित करने के अंग्रेजों के अधूरे काम को पूरा करने की कुचेष्टा कर रहे हैं।

http://epaper.jagran.com/main.aspx?edate=1...ode=2&pageno=8#
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<!--QuoteBegin-Bodhi+Oct 6 2007, 01:11 PM-->QUOTE(Bodhi @ Oct 6 2007, 01:11 PM)<!--QuoteEBegin-->
meanwhile interestingly, Rahul 8ajaj has questioned Baalu about the economic analysis of sscp.  what is the internal roi, he asked in a written query.  please send me the cost and business assumptions of the proposal, he wrote.  let us see how baalu will respond.  (Bajaj is now in Rajya Sabha from Maharashtra)
[right][snapback]73967[/snapback][/right]
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->

even though it shouldn't even require any argument based on roi to stop cutting the Setu, it will certainly help exposing the dirty agenda and incompetency of karunandhi, baalu and the other moodans who keep parroting it will create billions and billions of wealth and opprtunity.

After weeks of being asked in public I notice that no actual scientific study has been released. Shouldn't people be busily reading through seismic, oceanographic, historical, mythological, archaeological, chemical and host of other reports at this point ? If these have not been done what is the purpose of the 3 month stay?

Rahul Bajaj's email address according to the Rajya Sabha website is

rahul.bajaj@sansad.nic.in. May be we should email and extend our support and consultation

LokSabha website which provided email and contact info for all members (MPs)

http://164.100.24.209/newls/membercontactdetail.aspx
  Reply
Pioneer, 9 Oct., 2007
<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin-->Setu must have been man made

Second opinion: MP Ajithkumar

Many pieces of evidence from the science of ocean technology back the argument that Ram Setu was man-made. <b>Geological and geophysical survey </b>of the Sethusamudram Shipping Channel Project <b>reveal that to the north of Adam's Bridge on the Palk Bay side, the formations have undergone down faulting and that the Adam's Bridge came up as an up-thrown block,</b> a fact confirmed both by the bathymetry survey and the NASA land image.

<b>The study reveals that about 18,000 years ago, the sea level was 130 m lower than what it is today. </b>Even now, on the east and west coasts, submerged corals occur around 1 m to 2 m below the sea level, which must definitely have been the coastal zones. <b>During the last glacial age, the area from Sri Lanka and further south was a contiguous zone due to the lowered sea level, which later rose due to melting of glaciers in the Antarctic area.</b>

The coral formations study at Pamban, Rameswaram and Thookkudi by PK Banerjee proved that 7,300 years ago, the sea level on the southern part of the country was about 3.5 m above the present level. Subsequently, between 5,000 to 4,000 years ago, the sea level went down and rose to more than 2 m above what it is today.

<b>The geological logging of the boreholes drilled by the National Institute Of Ocean Technology in the inter-tidal areas of Adam's Bridge shows that in all the boreholes, the top portion is occupied by recent marine sands. </b>Almost all boreholes between 4.5 and 7.5 m intersected hard formations of calcareous sandstones and corals. Corals normally grow atop hard formations for the purpose of stability. <b>As the sea level rises, the coral colony grows up vertically to maintain the water depth 1 m to 2 m for survival.</b>

<b>But in case of Adams Bridge, the coral formations, with most of the coral rock pieces in the form of rounded pebbles of corals, hardly occur 1 m to 2.5 m in length and rest on loose marine sands.</b>

People in ancient times must have used the less dense calcareous sandstones and corals to construct links between India and Sri Lanka. This cannot be ruled out in the light of the recent geological and archaeological findings of the raised Teri formations supporting rich assemblages of Mesolithic-Microlithic tools and bones and fossils of both human beings and animals, indicating human habitation and activity at Rameswaram-Tuticorin-Sri Lanka costs as early as 8,000 to 9,000 years ago.

<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
  Reply
The Thamizh magazine Thuglak reports following:

The Tamil Nadu Tourism Development authority has issued a promotional poster that shows Sri Rama and Sri Lakshmana standing at the shore watching the monkeys/apes carry huge boulders and building the Rama Sethu. Associated text reads (not verbatim since I reading a Thamizh translation and translating back to English):

" ....the waters that carry Lord Rama's blessing by contact with his feet are still here"

"...this is where the army of monkeys crossed the ocean to rescue Sita Devi".

The following is verbatim from a snippet image of the poster shown on www.Thuglak.com (subscription required to view):

"...The floating stone "Setu Bandanam" used to build the sethu Bridge is worth seeing here...."

This poster is displayed in the Jansapthi train between Hardwar and Delhi.

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comes from Kaun Banega PM thread.


1. In entire tenure of BJP-led NDA, they have been supportive of Sethu Samudram Project.
2. It was in the pre-election manifesto of NDA through AIADMK/DMK, though not of BJP.
3. While they claim to be supporting SSCP, they did nothing to "implement" the project, except doing one research study after the other. (Which is most certainly the sensible thing to do, considering the nature of the project)
4. There was absolutely no 'Sanction', 'Approval', or 'Go-Ahead' or any other executive order in entire tenure of NDA to move ahead with the project.
5. There was no question arising of Rama Setu during NDA tenure, because until then, SSCP design was NOT through Rama Setu, but on the west side of Dhanushkoti, via the island, not through the sea.

so WHO approved the project?

below would help:

from Lok Sabha Archives...

<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin-->GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF SHIPPING

LOK SABHA
UNSTARRED QUESTION NO 4201
TO BE ANSWERED ON 25.08.2004

SETHU SAMUDRAM PROJECT IN TAMIL NADU

Member of Lok Sabha SHRI SALARAPATTY KUPPUSAMY KHARVENTHAN 

Will the Minister of SHIPPING be pleased to state:-

(a) whether any survey has been conducted to study the feasibility of the Sethu Samudram Project in Tamil Nadu;

(b) if so, the details thereof;

© whether approval for the project has been accorded;

(d) if so, the time by which the project will be completed; and

(e) if approval has not been accorded, the reasons for delay?

ANSWER
By
MINISTER OF SHIPPING, ROAD TRANSPORT & HIGHWAYS (SHRI T.R. BAALU)

(a) to (e)
The work to conduct detailed Environmental Impact Assessment study and establish Techno-Economic Viability of Sethusamudram Ship Canal Project was entrusted to National Environmental Engineering Research Institute (NEERI), Nagpur, which has been <span style='font-size:21pt;line-height:100%'>recently completed.</span> Tuticorin Port Trust (TPT), which has been designated as nodal agency, has filed an application <span style='font-size:21pt;line-height:100%'>on 9.6.2004 with Tamil Nadu Pollution Control Board</span> to obtain ‘No Objection Certificate’ to get environmental clearance from the Government of India. The TPT has also applied to the Government of Tamil Nadu in June, 2004 seeking further clearances as required for the project.

Government has proposed that a Special Purpose Vehicle (SPV)styled ‘Sethusamudram Corporation Ltd.’ be formed for implementation of the project, with major ports of Tuticorin, Chennai, Ennore, Visakhapatnam, Paradip and Shipping Corporation of India & Dredging Corporation of India as members of the SPV in the first phase. The tentative cost of the project is estimated to be Rs. 2000 crores.

It has been announced in the <span style='font-size:21pt;line-height:100%'>budget speech for the current year, i.e 2004-05</span> that the Government will participate in the funding of this project through a mix of equity support and debt guarantee”.

Consultant to prepare Detailed Project Report (DPR) has been appointed by TPT which is expected to be ready by the end of November, 2004 and <span style='font-size:21pt;line-height:100%'>formal approval for the project will be considered after availability of DPR. </span><!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
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also, couple of months later.

again from Lok Sabha:

<!--QuoteBegin-->QUOTE<!--QuoteEBegin-->GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF SHIPPING, ROAD TRANSPORT AND HIGHWAYS

LOK SABHA
UNSTARRED QUESTION NO 3517
TO BE ANSWERED ON 22.12.2004

SETHUSAMUDRAM NAHAR PROJECT
SHRI RAJIV RANJAN (LALAN) SINGH; NITISH KUMAR

Will the Minister of SHIPPING, ROAD TRANSPORT AND HIGHWAYS be pleased to state:-
(a) whether Sethusamudram Nahar Project has been sanctioned by the Government;
(b) if so, the length of the canal that would be constructed under this project; and
© the beneficiary States and the target fixed, if any for the completion of the project?

ANSWER
MINISTER OF SHIPPING, ROAD TRANSPORT AND HIGHWAYS (SHRI T.R. BAALU)

(a) <span style='color:red'>Sethusamudram Ship Channel Project is yet to be approved by the Competent Authority. </span>
(b) Length of the proposed channel is about 167 Kms.
© All the Ports situated on the Eastern and the Western coasts and in turn, all Maritime States are likely to be benefited. The project is expected to be completed within 3 years after obtaining all necessary clearances and approval.
<!--QuoteEnd--><!--QuoteEEnd-->
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