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Amarnath Land Deal
When Patil Committee arrived, Jammu looked like a scene on LOC.

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And yet, these were the scenes awaiting the committee

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On the entire way from Airport to the Rajbhawan where the meeting was held, committee could have only heard the shouts of Bharat Mata Ki Jai, and Bam Bam Bhole. People on entire route were gathered on the roof tops shouting slogans.

जम्मू, संवाद सहयोगी : श्री अमरनाथ भूमि वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन की आग में जल रहे जम्मू की स्थिति का जायजा लेने के लिए शनिवार सुबह दिल्ली से जम्मू पहुंचे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का स्वागत जम्मूवासियों ने हाथों में काले झंडे और थालियां बजाकर किया। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे को देखते हुए एयरपोर्ट से राजभवन तक चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे। लोग घरों तक ही सीमित रहें इसके लिए सेना द्वारा क्षेत्र की सभी गलियों के बाहर कंटीली तार लगाई गई। बावजूद इसके लोगों ने अपने घरों की छतों पर खड़े होकर थालियां बजाकर और काले झंडे दिखाकर अपना विरोध जताया। शनिवार सुबह करीब 10 बजे विशेष विमान से दिल्ली से जम्मू पहंुचे विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों को प्रशासन ने एयरपोर्ट से आगे ले जाना चाहा। लेकिन लोगों के विरोध को देखते हुए उन्हें टेक्निकल एयरपोर्ट से ले जाया गया। जब कारों के काफिले में बैठकर दल के सदस्य बाहर निकाले तो रास्ते में पड़ते घरों की छतों पर लोग एकत्र हो गए और थालियां बजाकर भूमि छीने जाने का विरोध करने लगे। लोगों ने इस दौरान हाथों में तिरंगा पकड़ा हुआ था और बम-बम भोले के जयकारों के साथ भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। इसके बाद जब काफिला फ्लाई ओवर पर पहुंचा तो ज्यूल चौक के निवासियों ने काले झंडे लहराते हुए छतों पर चढ़ गए और सदस्यों को अपने गुस्से से अवगत करवाया। क्षेत्र के लोगों ने घरों के बाहर आकर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के काफिले को रोककर भूमि शीघ्र वापस करने की मांग करने की कोशिश की। लेकिन सेना, अ‌र्द्धसैनिक बल व पुलिस के जवानों ने लोगों को घरों से बाहर नहीं आने दिया। काफिले के रास्तों में कोई परिंदा भी पर न मारे इसे इसका भी पूरा बंदोबस्त किया गया था। एयरपोर्ट से लेकर राजभवन तक आने वाले सभी रास्तों को शुक्रवार रात को ही सील कर किसी को वहां से जाने की इजाजत नहीं दी गई। रास्ते की सुरक्षा का जिम्मा सेना के हवाले किया गया था। सूत्रों के अनुसार करीब एक हजार जवानों को दल के सदस्यों के लिए रास्ता साफ रखने के लिए तैनात किया गया था।

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Mangat Ram, Congress Leader of Jammu, like a seasoned congressman was changing his colours inside the meeting and outside.

While the meeting was getting over, he came out to address the press gathered outside the Raj Bhawan, where he was saying that he had raised the voice of Jammu people in the meeting. Right then by chance a hindu leader Rajendra Singh Jambawal was passing by and he barged in to embarrass the Congress leader by saying that all Mangat Ram was speaking in the meeting was 'Yes Boss' to valley and Delhi Durbar. Every single point Mangat put forward was totally in contrast to the voice of Jammu people, and he was lying to the press. He challenged Mangat Ram to contradict him. Red faced Mangat Ram however left hurriedly away from press men.

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<span style='color:red'>मंगत अंदर कुछ, बाहर कुछ और बोले</span>

जम्मू, संवाद सहयोगी : श्री अमरनाथ जमीन मुद्दे पर हुई सर्वदलीय बैठक का पीपुल्स रेवूल्यूशनरी मूवमेंट ने बहिष्कार किया। मूवमेंट के प्रधान राजेंद्र सिंह जम्वाल ने कांगे्रसी नेताओं पर जम्मू के लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाए। जम्वाल जिस समय बैठक का बहिष्कार कर बाहर निकले उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित मंगत राम पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। जम्वाल ने कहा कि मंगत राम पत्रकारों को बाहर कुछ और बता रहे हैं, जबकि बैठक में वह भी कश्मीरियों की बोली बोल रहे थे। इससे हंगामा मच गया और पंडित मंगत राम शर्मा तेजी के साथ वापस चले गए। जम्वाल ने आरोप लगाया कि बैठक में कोई भी जम्मू को लेकर गंभीर नहीं है और हर किसी को कश्मीर की ही चिंता लगी हुई है। उन्होंने कांग्रेस पर दोगली पालिसी बरत कर जम्मू-कश्मीर के लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। उमर अब्दुला के संसद में दिए गए बयान को बैठक में सही ठहराया जा रहा है। जम्वाल ने कहा कि उन्होंने गृहमंत्री से बैठक में वोहरा को हटाने की मांग की है और उन्हें जम्मू में बने मौजूदा हालातों के बारे में बताया, लेकिन कांग्रेस के नेता जम्मू की बजाए कश्मीर को लेकर चिंतित थे। जम्मू के लोग लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध जता रहे थे लेकिन प्रशासन ने यहां पर कफ्र्यू लगाकर और सेना को संभाग की कमान सौंपकर लोकतंत्र का गला दबाया है जिसे जम्मू के लोग बर्दाश्त नही करेंगे। बैठक में शामिल नेशनल कांफ्रेंस के नेता सदोत्रा और हरबंस सिंह पर उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों नेताओं का संबंध जम्मू से है लेकिन वह भी अपने कश्मीरी आकाओं के साथ मिलकर जम्मू के लोगों का सही तरीके से पक्ष नही रख रहे थे। उन्होंने साफ कहा कि जिस वार्ता में महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुला, सोज और गुलाम नबी आजाद होंगे उस वार्ता का कोई नतीजा नही निकल सकता। उन्होंने कहा कि जब तक जमीन वापिस नहीं मिल जाती तब तक संघर्ष जारी रहेगा। स्थानीय लोगों को बोर्ड में शामिल कर जमीन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी जाए : श्राइन बोर्ड का पुनर्गठन कर इसके सभी सदस्य स्थानीय निवासी बनाए जाएं और फिर भूमि श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वापस कर दी जाए। यह सुझाव कांग्रेस के शिष्टमंडल ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को दिया। कांग्रेस शिष्टमंडल में वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रदेश कांग्रेस कमेटी धर्मपाल शर्मा, मंगत राम शर्मा, अमृत मल्होत्रा, चौ. लाल सिंह, जीएस चाढ़क, मूला राम आदि शामिल थे। शिष्टमंडल में शामिल नेताओं ने जल्द समस्या का समाधान करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि लोगों की धार्मिक आस्था को समझा जाना चाहिए। शिष्टमंडल ने जम्मू संभाग के लोगों की दूसरी समस्याओं को भी उजागर किया गया।
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Samiti won the first emotional victory after they succesfully forced Shivraj Patil to send out the valley leaders Mehbooba, Farook and Soz from the meeting.

Reacting to this, Mehbooba angrily told reporers that if they can resolve the issue without valley then let them. Challenging the Jammu protesters, she said nothing has changed in the valley's stand.

Farook Abdulla said the solution will be out in an hours time. What he meant he left unanswered.

Amar Singh blamed the ex-Governer Sinha for the whole episode. He said allocating land in the first place was a blunder.

Congress MP Lal Singh however dared to go away from party line and agreed with the Samiti that the land should be given to shrine board and Vohra recalled.

कश्मीरी नेतृत्व के बिना अगर मसले का कोई समाधान कर सकते हो तो कर लो : महबूबा

जम्मू, हमारे संवाददाता : पीडीपी की प्रधान महबूबा मुफ्ती ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर कश्मीरी नेतृत्व के बिना मसले का समाधान कर सकते हैं तो कर लो। फारूक अब्दुल्ला, सैफुद्दीन सोज और महबूबा मुफ्ती की उपस्थिति में बातचीत में भाग न लेने के संघर्ष समिति के फैसले से गुस्साई महबूबा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसा हल निकाला जाए जो कश्मीर के लोगों को मान्य हो और जिससे जम्मू में आंदोलन समाप्त हो जाए। पत्रकारों के प्रश्नों के जवाब में उन्होंने कहा कि अमरनाथ नाथ जमीन मुद्दे पर उनकी पार्टी की विचारधारा में कोई फर्क नहीं आया है और यह बात बार-बार पूछने की नहीं है। भूमि विवाद का समाधान एक घंटे में निकल आएगा : डा. फारूक पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने पत्रकारों के प्रश्नों से बचते हुए सिर्फ इतना ही कहा कि मसले का समाधान एक घंटे में निकल आएगा। पूर्व राज्यपाल जिम्मेदार : अमर समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने श्री अमरनाथ जमीन मुद्दे का ठीकरा राज्य के पूर्व राज्यपाल एसके सिन्हा के सिर फोड़ा। बैठक के बाद चुनिंदा पत्रकारों के साथ रूबरू होते हुए अमर सिंह ने कहा कि मसले के लिए पूर्व राज्यपाल ही जिम्मेदार है और नए राज्यपाल को कोई कसूर नहीं है। उन्होंने कहा कि मसले का समाधान सिर्फ बातचीत से ही हो सकता है। सर्वदलीय बैठक में भाग लेने पहुंचे डी राजा ने अधिक कुछ नही कहते हुए इतना ही कहाकि बातचीत से ही मसले का समाधान हो सकता है। जमीन लेकर ही रहेंगे : लाल सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित मंगत राम शर्मा ने तो जमीन मसले को लेकर कोई स्पष्ट बात नहीं की, अलबत्ता कांग्रेस के सांसद चौधरी लाल सिंह ने कहा कि जम्मू के लोग परवाह नहीं करे जमीन वापस लेकर ही रहेंगे। बैठक के बाद पत्रकारों से लाल सिंह ने कहा कि जमीन वापस बोर्ड को सौंपने और राज्यपाल वोहरा को हटाने की बात वह बैठक में रख चुके हंै। उम्मीद है कि यह दोनों मांगे पूरी होगी। वही नेकां के प्रांतीय प्रधान एव पूर्व विधायक अजय सदोत्रा ने कहा कि मसले का समाधान बातचीत से ही निकाल सकता है।

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Police and State Administration Officials surprised Samiti in the meeting by claiming only 3 have died in the agitation. They claimed that Kuldeep who committed suicide had nothing to do with the movement, and did so for other reasons. Likewise the youth who were killed in Samba was due to a gangwar! The other youth who died at Pir Mitha by jumping from the roof top when chased by the firing policemen - they said it was just an accident. For another youth Manjit, who died by a police granade at Kishtwad, they said it was a terrorist act. They however presented a long report of how 117 policemen have been injured including 2 critically. They said these injured policemen are being cured in PGI Chandigarh. Why not in Jammu - this they did not answer.

भूमि आंदोलन में सिर्फ तीन मरे!

जम्मू, संवाद सहयोगी : कश्मीरी अलगाववादियों की तर्ज पर राज्य के नागरिक और पुलिस प्रशासन ने भी सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान छेड़ दिया है। भूमि आंदोलन को दबाने और इसे कमतर साबित करने के लिए राज्य प्रशासन ने शनिवार को केंद्र की सर्वदलीय टीम के सामने इस आंदोलन में अब तक सिर्फ तीन लोगों की मौत होने का दावा किया। अधिकारियों ने आठ लोगों की शहादत को कोरा बकवास बताते हुए सर्वदलीय बैठक में इसकी पुष्टि कर सबको दंग कर दिया। बैठक में उपस्थित सदस्यों को राज्य के मौजूदा हालात की जानकारी देते हुए अधिकारियों ने कहा कि आंदोलन में अब तक तीन लोग फायरिंग में मारे गए हैं जबकि सांबा में दो युवकों की मौत गैंगवार में हुई है। उन्होंने अमरनाथ संघर्ष समिति के धरने के दौरान अपना बलिदान देने वाले कुलदीप वर्मा की मौत का कारण भी जहरीला पदार्थ खाना बताया। उन्होंने कहा कि कुलदीप का इस संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं था। इसी प्रकार अधिकारियों ने पीर मिट्ठा में पुलिसिया कहर से बचने के प्रयास में छत से छलांग लगाने पर हुई युवक रमेश की मौत को मात्र दुर्घटना बताया, जबकि किश्तवाड़ में प्रदर्शन के दौरान ग्रेनेड फेंके जाने से हुई मंजीत की मौत को आतंकी वारदात बताया। आंदोलन में अब तक 117 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं जिनमें से दो की हालत गंभीर है। उनका उपचार पीजीआई चंडीगढ़ में चल रहा है जबकि 78 अन्य लोग घायल हुए हैं।
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Issue Date: Sunday , August 10 , 2008
Jammu burns with pent-up anger
SANKARSHAN THAKUR

Jammu, Aug. 9: This might sound like an exaggeration, but that’s perhaps because you’ve been tuned too finely to pervasive political correctness. The trouble in Jammu isn’t merely over 80-odd acres of land around a faraway mountain shrine, it is over reordering the entire political landscape of a state that doesn’t care being polite about its bitter and visceral faultlines any more — Valley versus the rest, Kashmir versus Jammu, Hindu versus Muslim, if it comes down to that.

And, in the ringing words of Lila Karan Sharma, convener of the storm called the Shri Amarnath Sangharsh Samiti, it is even “Tricolour-carrying patriots of Jammu versus Pakistani flag-bearers of Kashmir”.

History is often a cause-and-effect lesson. The immediate cause of what’s unfolding today probably goes back to 1990 and the exodus of Pandits from the Valley under the sweep of the “azadi” movement. The accumulated causes go even further back the decades. Amarnath is probably merely the latest flashpoint.

Jammu, were you to get a sense of reigning sentiment in this shuttered, khaki and concertina-ridden city, is feeding sackfuls of its old and perceived grudges to these fires.

“We’ve put up with this for 60 years, 60 long years,” says Rati Razdan, a politically unaffiliated schoolteacher who has been at the barricades in Gandhinagar each morning, “all in the name of national unity. Those who blackmail the nation with threats of separation have been pampered, those who have been loyal have been ignored. What am I to do to be heard, pick up a green flag and shout anti-India slogans? Why can we not have land in Kashmir, why must Kashmiris have their way all the time in this country?”

Why does the Valley have more seats in the state Assembly even though Jammu is greater both in population and land area? Why must they have three MPs and we only two? Why must they have all chief ministers and we none? Why do they get 80 per cent of government jobs? Why must they have 60 per cent of power? Why must they have reservation in colleges and technical institutions even though our boys and girls do better? Why is it that we can be thrown out of our homes in the Valley and nothing happens? Why is there such a crisis if we want to set up facilities in the Valley for two months each year? Why do their leaders get to build private mansions in the forests of Jammu’s vaunted Bhatindi outskirts whereas we can’t even be granted land in the name of a shrine? Why are they part of an all-party delegation? They are the creators of this problem, why should they now become judges? And why should we go to them?

Why? Why? Why? Us and Them. Us and Them. Us and Them. Jammu is an angry trigger-burst of questions wherever you go. And they are well aware who they are firing them at. The casting out of all Valley leaders — Farooq Abdullah, Mehbooba Mufti, Saifuddin Soz — from the all-party delegation before the Samiti agreed even to come to the Raj Bhavan this afternoon was a stark demonstration of where and how Jammu is marking the divide.

“This is a disturbing flashpoint in the state’s history,” says professor Dipankar Sengupta who teaches economics at the University of Jammu, “this is the first time Jammu has shaken up the country and the Valley, and that is because of the accumulated history of grievances. The Valley has got too much national attention too consistently, it is Jammu’s turn now and it believes it has reasons to scream. It wants corrections.”

Sengupta, like many others you’d call liberal or middle-of-the-road, is not unaware that a virulent brand of Hindu nationalism is the flaming head of this extended tumult. It isn’t as if the consequences of things getting out of hand don’t alarm them. But, equally, they aren’t prepared to damn Jammu’s uproar as cynical rightwing opportunism alone.

“It is true the Sangh is the spearhead,” says Sengupta, “but that is because of the nature of when and how these frustrations have come to be vented. There are more people behind this than just the BJP, although the BJP is very happily behind it. Don’t forget the local Congress is straining to get on board as well, something must be pushing them.”A retired Kashmiri bureaucrat who is settled in Jammu and has no time for the Hindu rightwing, concedes there is more to this than just the row over land around the Amarnath cave. “It is true that the Sangh and its front organisations are in the forefront, it is also possible that the BJP will draw electoral mileage from this not only in Jammu but elsewhere too.

“But remember two important factors: this is still a city ruled by the Congress, the BJP won but a single seat in the last election. But more important, this is essentially a mercantile city. Businessmen and shopkeepers don’t tolerate such long closures if they don’t feel deeply about issues. Jammu has been closed 40 days and there is still no sign things will open up. There’s a sign for you.”

http://telegraphindia.com/1080810/jsp/fron...ry_9672216.jsp#
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Identity crisis

SWAPAN DASGUPTA

There is a facet of the turmoil in Jammu and Kashmir that is both puzzling and revealing: why did it take the government so long to begin talking to the protestors in Jammu?

Consider the facts. On July 31, Prime Minister Manmohan Singh invited the leader of Opposition L K Advani and Arun Jaitley for a discussion on internal security. After an anodyne exchange on terrorism, the prime minister requested the BJP to use its good offices to ensure that the 'blockade' of the highway to the Kashmir Valley is lifted. He had information that the separatists would use the disruption to press for accessing the Muzaffarabad road and demanding transit through Pakistan. This would create fresh complications and add an international dimension to the problem.

The prime minister's fears were warranted since this is precisely what the Hurriyat Conference leaders have begun demanding. Yet, for a full week, until the all-party meeting on August 6, the government sat back and watched the agitation in Jammu escalate steadily. At the all-party meeting too, the government's limited objective was to secure a unanimous resolution asking for the Jammu agitation to be called off. It was only after the BJP flatly refused that the government grudgingly agreed to begin a dialogue with the Sangharsh Samity spearheading the agitation.

Democracy is by definition quite tiresome. It involves constant engagement with saints, dreamers, rogues and normal people. In Jammu and Kashmir, successive governments have kept the door open for dialogue with even those who have questioned the state's inclusion in the Indian Union and supped with the ISI. The prime minister even travelled to Srinagar for a Round Table Conference which included the Hurriyat Conference - it is a separate matter the separatists didn't attend. So, why did the government hesitate to talk to those who have been on the streets for over a month, defying curfew, braving hardships and marching with the Indian tricolour? If the separatists are "our people", are the citizens of Jammu non-citizens?

The government's insensitivity arose from a mindset that has influenced official thinking, shaped the million-dollar conflict-resolution industry and permeated into the editorial classes. It was centred on the assumption that the Kashmir Valley was all that mattered in Jammu and Kashmir; Jammu and Ladakh were the loose ends that could be conveniently papered over. No one gave a damn when Ladakh protested against the demographic transformation and the threat to its identity and Jammu's long-standing complaints of discriminatory treatment were brushed aside with sneering condescension. All that mattered was the so-called 'hurt Kashmiri psyche' and Kashmiri 'alienation'. These labels of victimhood also became the cover for the most heinous political crime of independent India: the ethnic cleansing of Kashmiri Hindus from the Valley. Today, this shameful expulsion has become such a footnote that Hurriyat leaders can brazenly proclaim their 'secular' credentials on TV talk shows, while the voices of Pandit protest are rubbished with the disdain reserved for Praveen Togadia.

The protests in Jammu are only partially about the 40 acres of land given to the Amarnath Yatra Shrine Board and then taken away after the PDP and the separatists raised the bogey of a demographic invasion and an assault on Kashmiri identity. Imagine the outcry if a Haj Terminal is peremptorily denotified on 'cultural' grounds?

Having had their feelings trampled upon for so long, the people of Jammu are demanding the right to live with self-respect and dignity in a state where only separatist blackmail seem to matter. The protests are an assertion of political empowerment and a plea to the rest of India to give nationalism a place in Jammu and Kashmir. Simultaneously, it is a fitting rebuff to the mindset that deems Omar Abdullah's eloquent insensitivity in the Lok Sabha an iconic assertion of cosmopolitan modernity.

http://timesofindia.indiatimes.com/article...0,prtpage-1.cms
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<span style='color:red'>...For How Long?</span>

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A woman with her mouth covered with black cloth takes part in a silent protest.
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Police beating a protester at Nagrota.

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and chasing.
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Crossing Tavi, as Army has seiged the bridge.
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<span style='color:red'>Bol Bam!</span>

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<span style='color:red'>Sanjeev Singh</span>
Martyred August 5 2008, Samba.

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police claimed in the yesterday's meeting that he died in a gangwar.
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